विद्रोही की कवितायें
नाम- रमाशंकर यादव "विद्रोही" पूछ्ने पर कहते हैं कि "मैं तो नाम से ही विद्रोही हूँ. 'रमा' को तो विष्णु के साथ जाना था. यहाँ शंकर के साथ हैं." उनकी कविताएँ लफ्फाजी नहीं हैं बल्कि ज़मीनी हकीकत को साहस के साथ बेपर्दा करती हैं. .इस ब्लॉग पर आपको विद्रोही जी की कई कवितायेँ और उनके जीवन से जुडी कुछ बाते भी पढने को मिलेंगी..आप सब के सुझावों का स्वागत् है.
शुक्रवार, 21 सितंबर 2012
बुधवार, 8 अगस्त 2012
कवि को जानिये
http://lekhakmanch.com/?p=2471
इस लिंक पर आपको विद्रोही जी के नए कविता संग्रह ' नई खेती' की समीक्षा पढ़ने को मिलेगी.
उनकी कुछ कवितायेँ यहाँ पढ़ें -
http://lekhakmanch.com/?p=1359
उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें -
http://lekhakmanch.com/?p=1349
और भी कुछ विकीपीडिया पर -
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5_'%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80'
इस लिंक पर आपको विद्रोही जी के नए कविता संग्रह ' नई खेती' की समीक्षा पढ़ने को मिलेगी.
उनकी कुछ कवितायेँ यहाँ पढ़ें -
http://lekhakmanch.com/?p=1359
उनके जीवन से जुड़ी कुछ बातें -
http://lekhakmanch.com/?p=1349
और भी कुछ विकीपीडिया पर -
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%B5_'%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A5%80'
शनिवार, 4 सितंबर 2010
दुनिया मेरी भैंस
मैं अहीर हूँ
और ये दुनिया मेरी भैंस है
मैं उसे दुह रहा हूँ
और कुछ लोग कुदा रहे हैं
ये कउन ( कौन ) लोग हैं जो कुदा रहे हैं ?
आपको पता है.
क्यों कुदा रहे हैं ?
ये भी पता है.
लेकिन एक बात का पता
न हमको है न आपको न उनको
कि इस कुदाने का क्या परिणाम होगा
हाँ ...इतना तो मालूम है
कि नुकसान तो हर हाल में खैर
हमारा ही होगा
क्योंकि भैंस हमारी है
दुनिया हमारी है !
------------------------------
बीडी पीते बाघ
कि अभी मैं आपको बताऊंगा नहीं
बताऊंगा तो आप डर जायेंगे
कि मेरी सामने वाली इस जेब में
एक बाघ सो रहा है
लेकिन आप डरे नहीं
ये बाघ
इस कदर से मैंने ट्रेंड कर रखा है
कि अब आप देखें
कि मेरी सामने वाली जेब में एक बाघ सो रहा है
लेकिन आपको पता नहीं चल सकता
कि बाघ है
सामने वाली जेब में एक आध बाघ पड़े हों
तो कविता सुनाने में सुभीता रहता है
लेकिन एक बात बताऊँ?
आज मैं आप दोस्तों के बीच में
कविता सुना रहा हूँ
इसलिए मेरी जेब में एक ही बाघ है
लेकिन जब मैं कविता सुनाता हूँ -'उधर'
उधर- जिस तरफ रहते हैं मेरे दुश्मन
अकेले अपने ही बूते पर
तो मेरी जेब में एक नहीं दो बाघ रहते हैं
और तब मैं अपनी वो लाल वाली कमीज पहनता हूँ
जिसकी कि आप दोस्त लोग बड़ी तारीफ़ करते हैं
जिसमें सामने दो जेबें हैं
मैं कविता पढता जाता हूँ
और मेरे बाघ सोते नहीं हैं
बीडी पीते होते हैं
और बीच बीच में
धुएं के छल्ले छोड़ते जाते हैं ...
-- विद्रोही
गुरुवार, 29 अप्रैल 2010
इस लिंक पर क्लिक करिए --
http://www.youtube.com/watch?v=gFXB4lkkhas
ये विद्रोही जी की एक कविता है जो उन्होंने जे एन यू के एड ब्लोंक पर सुनाई थी. ख़राब विडिओ के लिए खेद है लेकिन आवाज़ साफ़ सुनाई देगी आपको. ये कविता उन लोगो को ज़रूर सुनने चाहिए जो विद्रोही जी को महिला विरोधी साबित करना चाहते हैं या समझते हैं.
http://www.youtube.com/watch?v=gFXB4lkkhas
ये विद्रोही जी की एक कविता है जो उन्होंने जे एन यू के एड ब्लोंक पर सुनाई थी. ख़राब विडिओ के लिए खेद है लेकिन आवाज़ साफ़ सुनाई देगी आपको. ये कविता उन लोगो को ज़रूर सुनने चाहिए जो विद्रोही जी को महिला विरोधी साबित करना चाहते हैं या समझते हैं.
गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009
नूर मियां
नूर मियां
आज तो चाहे कोई विक्टोरिया छाप काजल लगाये
या साध्वी ऋतंभरा छाप अंजन
लेकिन असली गाय के घी का सुरमा
तो नूर मियां ही बनाते थे
कम से कम मेरी दादी का तो यही मानना था
नूर मियां जब भी आते
मेरी दादी सुरमा जरूर खरीदती
एक सींक सुरमा आँखों मे डालो
आँखें बादल की तरह भर्रा जाएँ
गंगा जमुना कि तरह लहरा जाएँ
सागर हो जाएँ बुढिया कि आँखें
जिनमे कि हम बच्चे झांके
तो पूरा का पूरा दिखें
बड़ी दुआएं देती थी मेरी दादी नूर मियां को
और उनके सुरमे को
कहती थी कि
नूर मियां के सुरमे कि बदौलत ही तो
बुढौती में बितौनी बनी घूम रही हूँ
सुई मे डोरा दाल लेती हूँ
और मेरा जी कहे कि कहूँ
कि ओ री बुढिया
तू तो है सुकन्या
और तेरा नूर मियां है च्यवन ऋषि
नूर मियां का सुरमा
तेरी आँखों का च्यवनप्राश है
तेरी आँखें , आँखें नहीं दीदा हैं
नूर मियां का सुरमा सिन्नी है मलीदा है
और वही नूर मियां पाकिस्तान चले गए
क्यूं चले गए पाकिस्तान नूर मियां
कहते हैं कि नूर मियां का कोई था नहीं
तब , तब क्या हम कोई नहीं होते थे नूर मियां के ?
नूर मियां क्यूं चले गए पकिस्तान ?
बिना हमको बताये
बिना हमारी दादी को बताये
नूर मियां क्यूं चले गए पकिस्तान?
अब न वो आँखें रहीं और न वो सुरमे
मेरी दादी जिस घाट से आयी थी
उसी घाट गई
नदी पार से ब्याह कर आई थी मेरी दादी
और नदी पार ही चली गई
जब मैं उनकी राखी को नदी में फेंक रहा था
तो लगा कि ये नदी, नदी नहीं मेरी दादी कि आँखें हैं
और ये राखी, राखी नहीं
नूर मियां का सुरमा है
जो मेरी दादी कि आँखों मे पड़ रहा है
इस तरह मैंने अंतिम बार
अपनी दादी की आँखों में
नूर मियां का सुरमा लगाया.
आज तो चाहे कोई विक्टोरिया छाप काजल लगाये
या साध्वी ऋतंभरा छाप अंजन
लेकिन असली गाय के घी का सुरमा
तो नूर मियां ही बनाते थे
कम से कम मेरी दादी का तो यही मानना था
नूर मियां जब भी आते
मेरी दादी सुरमा जरूर खरीदती
एक सींक सुरमा आँखों मे डालो
आँखें बादल की तरह भर्रा जाएँ
गंगा जमुना कि तरह लहरा जाएँ
सागर हो जाएँ बुढिया कि आँखें
जिनमे कि हम बच्चे झांके
तो पूरा का पूरा दिखें
बड़ी दुआएं देती थी मेरी दादी नूर मियां को
और उनके सुरमे को
कहती थी कि
नूर मियां के सुरमे कि बदौलत ही तो
बुढौती में बितौनी बनी घूम रही हूँ
सुई मे डोरा दाल लेती हूँ
और मेरा जी कहे कि कहूँ
कि ओ री बुढिया
तू तो है सुकन्या
और तेरा नूर मियां है च्यवन ऋषि
नूर मियां का सुरमा
तेरी आँखों का च्यवनप्राश है
तेरी आँखें , आँखें नहीं दीदा हैं
नूर मियां का सुरमा सिन्नी है मलीदा है
और वही नूर मियां पाकिस्तान चले गए
क्यूं चले गए पाकिस्तान नूर मियां
कहते हैं कि नूर मियां का कोई था नहीं
तब , तब क्या हम कोई नहीं होते थे नूर मियां के ?
नूर मियां क्यूं चले गए पकिस्तान ?
बिना हमको बताये
बिना हमारी दादी को बताये
नूर मियां क्यूं चले गए पकिस्तान?
अब न वो आँखें रहीं और न वो सुरमे
मेरी दादी जिस घाट से आयी थी
उसी घाट गई
नदी पार से ब्याह कर आई थी मेरी दादी
और नदी पार ही चली गई
जब मैं उनकी राखी को नदी में फेंक रहा था
तो लगा कि ये नदी, नदी नहीं मेरी दादी कि आँखें हैं
और ये राखी, राखी नहीं
नूर मियां का सुरमा है
जो मेरी दादी कि आँखों मे पड़ रहा है
इस तरह मैंने अंतिम बार
अपनी दादी की आँखों में
नूर मियां का सुरमा लगाया.
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